इक बात होंठों तक है जो आई नहीं,
बस आँखों से है झांकती,
तुमसे कभी, मुझसे कभी,
कुछ लफ्ज़ है वो मांगती,
जिनको पहेन के होंठों तक आ जाए वो,
आवाज़ की बाहों में बाहें डाल के इठलाये वो.
लेकिन जो ये इक बात है,
अहसास ही अहसास है,
खुशबू सी है जैसे हवा में तैरती,
जिसका पता तुमको भी है,
जिसकी खबर मुझको भी है,
दुनिया से भी छुपता नहीं,
ये जाने कैसा राज़ है.

पिघले नीलम सा बहता हुआ ये समाँ,
नीली नीली सी ये खामोशियाँ,
ना कहीं है ज़मीं, ना कहीं आसमां,
सरसराती हुई टहनियां, पत्तियाँ,
कह रहीं हैं के बस तुम हो यहाँ,
सिर्फ मैं हूँ मेरी सांसें हैं और मेरी धडकनें,
ऐसी गहराइयां, ऐसी तन्हाइयां,
और मैं, सिर्फ मैं,
अपने होने पे मुझको यकीं आ गया.

दिलों में अपनी बेताबियाँ लेके चल रहे हो, तो ज़िन्दा हो तुम.
नज़र में ख्वाबों की बिजलियाँ लेके चल रहे हो, तो ज़िन्दा हो तुम.
हवा के झोंकों की जैसे आजाद रहना सीखो,
तुम एक दरिया के जैसे लहरों में बहना सीखो,
हर एक लम्हे से तुम मिलो खोले अपनी बाहें,
हर एक पल एक नया समाँ देखें ये निगाहें,
जो अपनी आँखों में हैरानियाँ लेके चल रहे हो, तो ज़िन्दा हो तुम.
दिलों में तुम अपनी बेताबियाँ लेके चल रहे हो, तो ज़िन्दा हो तुम.

जब जब दर्द का बादल छाया,
जब ग़म का साया लहराया,
जब ये तनहा दिल घबराया,
हमने दिल को ये समझाया.
दिल आखिर तू क्यूँ रोता है,
दुनिया में यूँही होता है,
ये जो गहरे सन्नाटे हैं,
वक़्त ने सबको ही बांटे हैं.
थोडा ग़म है सबका किस्सा,
थोड़ी धूप है सबका हिस्सा,
आँख तेरी बेकार ही नम है,
हर पल एक नया मौसम है.
क्यूँ तू ऐसे पल खोता है,
दिल आखिर तू क्यूँ रोता है!!

- जावेद अख्तर