ऐसा भी इस जहाँ में किसी का सफ़र न हो
मंज़िल तो मुंतज़िर हो मगर रहगुज़र न हो
बाहर तो जो भी होना है होता रहे ,मगर
अंदर हमारे कुछ भी इधर से उधर न हो
जीने के काश ! और भी मिल जाएं कुछ सुबूत
दार-ओ-मदार सारा फ़क़त साँस पर न हो
- राजेश रेड्डी
ऐसा भी इस जहाँ में किसी का सफ़र न हो
मंज़िल तो मुंतज़िर हो मगर रहगुज़र न हो
बाहर तो जो भी होना है होता रहे ,मगर
अंदर हमारे कुछ भी इधर से उधर न हो
जीने के काश ! और भी मिल जाएं कुछ सुबूत
दार-ओ-मदार सारा फ़क़त साँस पर न हो
- राजेश रेड्डी