1.
बुलाती है मगर जाने का नईं वो दुनिया है उधर जाने का नईं ज़मीं रखना पड़े सर पर तो रक्खो चलो हो तो ठहर जाने का नईं है दुनिया छोड़ना मंज़ूर लेकिन वतन को छोड़ कर जाने का नईं वबा फैली हुई है हर तरफ़ अभी माहौल मर जाने का नईं ~राहत इंदौरी साहब
2.
मेरे हुजरे में नहीं और कही पर रख दो
आसमान लाये हो, ले आओ ज़मीन पर रख दो
मैंने जिस ताक में कुछ टूटे दीए रखे हैं
चाँद तारों को भी ले जाके वही पर रख दो
अब कहाँ ढूंढने जाओगे हमारे कातिल
आप तो क़त्ल का इल्ज़ाम हमी पर रख दो
– राहत इंदौरी