तुम जब आओगी तो खोया हुआ पाओगी मुझे
मेरी तन्हाई में ख़्वाबों के सिवा कुछ भी नहीं,
मेरे कमरे को सजाने की तमन्ना है तुम्हें
मेरे कमरे में किताबों के सिवा कुछ भी नहीं।
शर्म, दहशत, झिझक, परेशानी
नाज़ से काम क्यूं नहीं लेती,
आप, जी, वो, मगर, ये सब क्या है
तुम मेरा नाम क्यूं नहीं लेती?
कितने ऐश उड़ाते होंगे कितने इतराते होंगे
जाने कैसे लोग वो होंगे जो उस को भाते होंगे,
यारों कुछ तो हाल सुनाओ उन कयामत बाहों को
वो जो सिमटते होंगे उन में वो तो मर जाते होंगे।
मुस्तक़िल बोलता ही रहता हूँ
कितना ख़ामोश हूँ मैं अंदर से।
ज़िंदगी किस तरह बसर होगी
दिल नहीं लग रहा मोहब्बत में
नया इक रिश्ता पैदा क्यूँ करें हम,
बिछड़ना है तो झगड़ा क्यूँ करें हम..!!
वास्ता हुस्न से या शिद्दत ए जज्बात से क्या
इश्क को तेरे कबीले या मेरी जात से क्या
प्यास देखूं या करूँ फिक्र कि घर कच्चा है
सोच में हूँ कि मेरा रिश्ता है बरसात से क्या..!
कैसे कहें कि तुझ को भी हम से है वास्ता कोई
तू ने तो हम से आज तक कोई गिला नहीं किया।
तुमने एहसान किया था जो हमें चाहा था
अब वो एहसान जता दो तो मज़ा आ जाये।
मुझ से बिछड़ कर भी वो लड़की कितनी ख़ुश ख़ुश रहती है
उस लड़की ने मुझ से बिछड़ कर मर जाने की ठानी थी
ये जो तकते हो आसमां को तुम, कोई रहता है आसमां में क्या,
ये मुझे चैन क्यों पड़ता, एक ही शख़्स था जहां में क्या.
कौन सीखता है सिर्फ़ बातों से,
सबको एक हादसा ज़रूरी है।
इतना ख़ाली था अंदरूँ मेरा
कुछ दिनों तो ख़ुदा रहा मुझ में ।
इलाज ये है कि मजबूर कर दिया जाऊँ
वगरना यूँ तो किसी की नहीं सुनी मैं ने.
हम वो हैं जो ख़ुदा को भूल गए,
तुम मेरी जान किस गुमान में हो..!!
जाने किस ग़म को छुपाने की तमन्ना है उसे,
आज हर बात पे हँसते हुए देखा उसको...
सोचता हूँ कि उस की याद आख़िर
अब किसे रात भर जगाती है
चारासाज़ों की चारा-साज़ी से,
दर्द बदनाम तो नहीं होगा,
दवा दो, हाँ दवा दो, मगर ये बतला दो,
मुझे आराम तो नहीं होगा?
अब मेरी कोई ज़िंदगी ही नहीं,,
अब भी तुम मेरी ज़िंदगी हो क्या..!!
बिन तुम्हारे कभी नहीं आई
क्या मेरी नींद भी तुम्हारी है
बे-दिली क्या यूँही दिन गुज़र जाएँगे
सिर्फ़ ज़िंदा रहे हम तो मर जाएँगे
कितनी दिलकश हो तुम कितना दिल-जू हूँ मैं
क्या सितम है कि हम लोग मर जाएँगे ।
अब फ़क़त आदतों की वर्ज़िश है
रूह शामिल नहीं शिकायत में
काम की बात मैं ने की ही नहीं
ये मिरा तौर-ए-जिंदगी ही नहीं